कबीर के जीवन एवं मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए-kabir-biography-in-hindi

 कबीर के जीवन एवं मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए 

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  • कबीर का जीवन परिचय
    कबीर का जीवन परिचय

  • कबीर के जीवन एवं मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए

  • 🌺 कबीर प्रेम का नाम है 

  • 🌺 कबीर दर्शन , एकता और सद्भाव का भी नाम है

  • 🌺  कबीर का संगम प्रयाग के संगम से ज्यादा गहरा है

  •  🌺 वहां कुरान और वेद ऐसे खो गए हैं कि कोई अंतर ही नहीं रह गया है ।
  •  🌺 कबीर का मार्ग सीधा और साफ है । 
  • 🌺 पंडित नहीं चल पाएगा इस मार्ग पर
  •  🌺निर्दोष और कोरा कागज जैसा मन ही चल पाएगा उस पर ।         
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  • कबीर का जन्म कहां हुआ ? उनके माता - पिता कौन थे ? उनके गुरु का नाम क्या था ? इस विषय में प्राप्त ऐतिहासिक तथ्यों में एकरुपता नहीं है । 
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  • कबीर के जीवन एवं मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए
  • कबीर के संबंध में यह निश्चित नहीं कि वे हिन्दू थे या मुसलमान । हिन्दुओं का मानना है कि कबीर हिन्दू थे । मुसलमानों का कहना है कि वह मुसलमान थे ।
  •  कबीर के जन्म को लेकर कई तरह की कथाएं प्रसिद्ध हैं । लगभग छ : सौ वर्ष पहले की बात है । काशी का जुलाहा नीरू अपनी पत्नी नीमा के साथ काशी की तरफ आ रहा था । उसी दिन उसका गौना हुआ था । रास्ते में तालाब पड़ता था ।
  •  हाथ - पैर धोने के लिए वह तालाब के पास पहुंचा तो उसने किसी बालक के रोने की आवाज सुनी । नीरू को जिज्ञासा हुई । चारों तरफ देखा । आवाज एक झाड़ी की तरफ से आ रही थी । उसी ओर वह बढ़ गया । देखा , वहां एक नन्हा - सा बालक पड़ा है । इतना छोटा जैसे कुछ देर पहले ही पैदा हुआ हो । नीमा डरी कि कुछ झंझट होगा । लोग क्या सोचेंगे । अपवाद होगा । बदनामी होगी । लेकिन जब नीमा ने बच्चे को ध्यान से देखा तो उसका मन उस पर मोहित हो गया । 
  • फिर उन दोनों ने लोक लाज की परवाह न की । वे बच्चे को अपने साथ ले आए । काशी में जो मुहल्ला कबीर चौरा के नाम से आज मशहूर है , वहीं पर नीरू का घर था । वे बच्चे को लेकर घर आ गए । बच्चे का नामकरण करने के लिए उन्होंने काजी को बुलाया । काजी ने कुरान खोला । कहा जाता है कि उसमें हर जगह कबीर , कुब्रा , अकबर आदि शब्द मिले अरबी में ये शब्द महान परमात्मा के लिए आते हैं । 
  • काजी अचंभित था । साधारण जुलाहे के बच्चे को कैसे इतना बड़ा नाम दिया जाए । काजी ने कई बार कुरान उलटा - पलटा , पर हर बार वही शब्द उसे नजर आए । फिर क्या था , इस खबर को सुनकर कई काजी नीरू के घर आ गए और उन्होंने नीरू से कहा कि इस बच्चे का कत्ल कर दे , वर्ना इस बालक की वजह से कोई अनहोनी हो सकती है । नीरू - नीमा इतने बेरहम नहीं थे । उन्होंने काजियों की सलाह नहीं मानी और बालक का नाम कबीर रख दिया । 

  • कबीर के जन्म को लेकर एक दूसरी लोक कथा भी प्रचलित है - एक रोज एक ब्राह्मण अपनी विधवा बेटी के साथ स्वामी रामानंद के दर्शनों के लिए गया । पिता के साथ ही बेटी ने भी रामानंद के चरण स्पर्श किए । रामानंद ने ध्यान नहीं दिया और अचानक उनके मुंह से निकल गया कि पुत्रवतीभव ।
  •  स्वामी रामानंद का आशीर्वाद भला कैसे झूठा होता कुछ महीनों के बाद उसने एक पुत्र को जन्म दिया । विधवा के लिए यह शुभ घटना नहीं थी । लोक - लाज के कारण उस ब्राह्मण कन्या ने बालक को लहरतारा तालाब के किनारे छोड़ दिया । 
  • इसी बालक को नीरू और नीमा ने लहरतारा के किनारे से पाया था । इस तरह से कबीर हिन्दू परिवार में पैदा हुए और मुसलमान घर में पले ।
  •  एक तीसरी लोक - कथा भी कबीर के जन्म को लेकर है - शुकदेवजी ने कबीर के रूप में अवतार लिया था । पूर्व जन्म में उन्होंने बारह वर्ष तक गर्भावास का कष्ट भोगा था । इसलिए इस बार गर्भावास से बचने के लिए उन्होंने अपने - आपको एक सीपी में बंद कर लिया और उसे गंगा के किनारे छोड़ दिया ।
  •  यही सीपी बहते - बहते लहरतारा तालाब में पहुंच गई और एक कमल के पत्ते पर खुल गई । इस सीपी से एक शिशु का जन्म हुआ । यही शिशु कबीर के नाम से मशहूर हुआ । 

  • उपरोक्त सारी कथाओं से यही सिद्ध होता है कि कबीर का जन्म कैसे हुआ कुछ भी निश्चित रूप से कहना मुश्किल है । कबीर किस तिथि , तारीख और सन् में पैदा हुए यह भी निश्चित करना कठिन ही है । 
  • कबीर के जन्म के विषय में यह छंद मशहूर 
  • चौदह सौ पचपन साल गए चन्द्रवार इक ठाठ ठए । जेठ सुदी बरसायत की पूरनमासी प्रकट भए । इस छन्द का अर्थ है - बिक्रम के 1455 साल बीतने पर सोमवार को जेठ की पूर्णमासी , वट सावित्री के पर्व पर कबीर पैदा हुए थे । वट सावित्री के शुभ अवसर पर आज भी कबीरपंथी महात्मा कबीर का जन्मोत्सव मनाते हैं । कुछ विद्वान कबीर का जन्म - काल 1456 मानते हैं और यह सही भी लगता है क्योंकि छन्द में भी है कि 1455 वां संवत बीत जाने पर यानी सं . 1456 में महात्मा कबीर का जन्म हुआ । कबीर के जन्मस्थान के बारे में भी तीन मत मगहर , काशी , आजमगढ़ में बेलहरा गांव । कबीर ने लिखा भी है ' पहिले दरसन मगहर पायो पुनि कासी बसे आई । ' अर्थात काशी में रहने से पहले कबीर ने मगहर देखा । मगहर में कबीर का मकबरा भी है कबीर का अधिकांश समय काशी में बीता । वे ' काशी के जुलाहे ' के रूप में ही जाने जाते हैं । कबीरपंथी भी काशी को कबीर का जन्मस्थान मानते हैं । कबीर मगहर , काशी , आजमगढ़ में से कहां पैदा हुए थे , इस संबंध में विद्वानों के अलग - अलग मत हैं । किसी एक जगह पर मुहर लगाना मुश्किल है । कबीर के माता - पिता निर्धन थे । कबीर की पढ़ाई पर कोई ध्यान नहीं दिया गया । कबीर किताबी विद्या प्राप्त न कर सके । उन्होंने स्वयं इस बात को स्वीकार भी किया है 

  • - ' मसि कागद छुयो नहीं , कलम गही नहीं हाथ । '
  •  लेकिन किताबी विद्या ही सब कुछ नहीं होती । कबीर किताबी ज्ञान से भी ऊपर निकले । वह तो ज्ञान के भंडार थे । उनमें भावुकता , प्रतिभा कूट कूटकर भरी थी । वह बचपन में ही राम - भक्ति में डूब गए । जुलाहा परिवार में पलने - बढ़ने के बाद भी उन पर मुसलमानी रहन - सहन का प्रभाव नहीं पड़ा । वे हिन्दुओं की तरह कंठी - माला धारण करते , तिलक लगाते और राम - नाम का सुमिरन करते । 
  • कबीर को एक सच्चे गुरु की तलाश थी । काशी में उन दिनों सबसे प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य स्वामी रामानंद थे । कबीर के मन में उन्हीं से दीक्षा लेने की इच्छा जागी । लेकिन वैष्णव आचार्य एक जुलाहे को कैसे दीक्षा दे सकता था ।
  •  कबीर ने इस दूर करने के लिए एक उपाय निकाला । बाधा को कबीर सुबह के चार बजे से पहले ही गंगा की सीढ़ियों पर जाकर लेट गए । स्वामी रामानंद गंगा में स्नान करके सीढ़ियां चढ़ रहे थे , तभी उनका पैर किसी से टकराया । ' राम - राम ' कहकर स्वामी जी ने पैर हटा लिया । कबीर ने इसी ' राम राम ' को गुरुमंत्र मान लिया ।
  •  इस तरह से कबीर ने रामानंद को अपना गुरु स्वीकार कर लिया । कबीर के समय में भारत पर मुसलमानों का राज्य था ।
  •  कबीर परम वैरागी थे । सांसारिक मोह - माया से उनका कोई सरोकार नहीं था ।
  •  धन - दौलत उनके लिए व्यर्थ था , फिर भी वह गृहस्थ - संन्यासी के रूप में ही जीवन बिताते रहे । 
  • वे कपड़ा बुनकर उसे बाजार में बेचने जाते और उससे जो भी लाभ होता , उससे अपना और अपने परिवार का जीवन - निर्वाह किया करते थे । 
  • कबीर एक सफल गृहस्थ , सफल इंसान और महान संत ही नहीं थे बल्कि एक समाज सुधारक भी थे ।
  •  कबीर को जब लगने लगा कि उनका अवसान - काल समीप है , अब इस शरीर को त्यागना होगा तो उन्होंने काशी नगरी को छोड़ने का मन बनाया । वह इस बात से सहमत नहीं थे कि काशी मोक्ष की नगरी है । 
  • कबीर ने घोषणा की - ' वह अब मगहर में जाकर रहेंगे । ' मगहर के विषय में यह अंधविश्वास था कि वहां मरने पर मुक्ति नहीं मिलती । कबीर तो जीवन - भर अंधविश्वास के विरुद्ध लड़ते रहे थे । मगहर के माथे पर लगे इस कलंक को धोना जरूरी था । अंधविश्वास का विरोध आवश्यक था । 
  • इस घोषणा से कबीर के शिष्यों को बड़ा कष्ट हुआ । कबीर ने उन्हें समझाया - ' मोक्ष के लिए स्थान नहीं कर्म प्रधान होते हैं । 
  • भावभक्ति ' के भरोसे वे मगहर में प्राण छोड़ने पर भी अपने राम में इस प्रकार घुल - मिल जाएंगे जैसे पानी में पानी मिल जाता है ।
  •  जिसके हृदय में राम का वास है , उसके लिए काशी और मगहर में कोई भी तो अंतर नहीं अगर काशी में मृत्यु होने पर मोक्ष मिलता है तो फिर राम की कौन - सी बड़ाई समझी जाए ? ' 
  • अंतत : कबीर मगहर पहुंच गए । वहां पहुंचने पर उनके भक्तों का मेला - सा लग गया । हर कोई उनके दर्शन की आस लेकर आता था । 
  • अंतिम दिन उन्होंने सबको एकत्र किया । कबीर ने सबकी ओर देखा । तभी लोगों ने देखा कि एक ज्योति कबीर के शरीर से बाहर आई और आसमान की ओर चली गई । सबको ही विश्वास हो गया कि कबीर का महाप्रयाण हो गया । 
  • उनके निधन का समाचार मिलते ही विवाद खड़ा हो गया । काशी नरेश वीरसिंह और उनके हिन्दू - भक्त चाहते थे कि कबीर का अंतिम संस्कार अग्नि में जलाकर हिन्दू - पद्धति से किया जाए । 
  • मुस्लिम समाज का कहना था कि उनका संस्कार मुस्लिम मजहब के अनुसार दफनाकर होना चाहिए । बात इतनी बढ़ी कि दोनों ओर से तलवारें खिंच गईं । फिर लोगों ने जब कुटी का द्वार खोला तो वे सब दंग रह गए । वहां कबीर का शव नहीं था । उसके स्थान पर फूलों का एक छोटा - सा ढेर पड़ा । अब झगड़ा खत्म हो गया था । दोनों धर्मों के लोगों अपनी - अपनी आस्था के अनुसार कबीर का संस्कार किया ।

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